बिलकिस बानो केस: क्रूरता और न्याय के लिए 15 साल के लंबे इंतजार की कहानी
बिलकिस बानो केस: बिलकिस बानो केस एक ऐसी घटना है जिसमें उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार के 14 सदस्यों की हत्या के 15 साल बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी 20 आरोपियों को दोषी करार दिया है। ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सात आरोपियों को बरी कर दिया था।
बिलकिस बानो केस:
3 मार्च 2002 को, चार महिलाओं और चार बच्चों सहित 14 लोगों की हत्या कर दी गई थी, जबकि 21 साल की बिलकिस याकूब रसूल के साथ गैंग रेप (Gang rape) किया गया और उसे मरने के लिए छोड़ दिया गया। यह गुजरात (gujrat) की गैंगरेप पीड़िता हैं जो की गुजरात दंगों 2002 के दौरान हुआ। लेकिन वह इस क्रूरता से बच गई और न्याय के लिए लड़ी।
बिलकिस बानो (Bilkis Bano) अचानक चर्चा में इसलिए आ गई हैं क्योंकि 15 साल बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने 15 अगस्त को फैसला सुनाया कि 11 आरोपी उम्रकैद की सजा के हकदार हैं लेकिन राष्ट्र की अंतरात्मा को झकझोर देने वाले अपराध के लिए किसी भी दोषी को फाँसी नहीं दी गई और उनको रिहा कर दिया गया।
Bombay High Court ने डॉक्टरों और पुलिसकर्मियों समेत सात आरोपियों को बरी कर दिया था, जिन्हें सबूतों से छेड़छाड़ का दोषी ठहराया गया था।
कौन है बिलकिस बानो?
27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती ट्रेन जलाए जाने के बाद गुजरात हिंसक हो गया था, जब ट्रेन में 59 कारसेवक मारे गए थे।
गोधरा कांड (Godhra Hinsa 2002) के बाद पूरे गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई। मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदायों के हजारों परिवार सुरक्षित स्थानों पर जा रहे थे। उन्हीं में से एक परिवार था बिलकिस बानो का।
परिवार एक ट्रक में जा रहा था। इसमें 17 लोग सवार थे। अहमदाबाद से बहुत दूर दाहोद जिले के रणधीकपुर गांव के पास अचानक 30-35 दंगाइयों की भीड़ ने हमला कर दिया जिसमें 14 लोगों की मौत हो गई। मृतकों में बिलकिस की दो वर्षीय बेटी सलेहा भी शामिल है।
बिलकिस बानो, पांच महीने की गर्भवती थी फिर भी उसके साथ गैंग रेप और क्रूरता की गई।
बिलकिस बानो की न्याय के लिए लड़ाई
करीब तीन घंटे बाद बिलकिस बानो को होश आया। बिलकिस बानो ने अपने बयान में बताया था कि, “मैंने खुद को नग्न पाया। मैंने देखा कि मेरे परिवार के सदस्यों के शव इधर-उधर पड़े हुए हैं। मैं डर गई। मैंने खुद को ढंकने के लिए कुछ कपड़े की तलाश की। मैंने अपना पेटीकोट देखा और अपने शरीर को ढक लिया और पहाड़ियों में छिप गई।”
बिलकिस बानो ने एक आदिवासी परिवार के यहां शरण ली। बिलकिस एक अनपढ़ महिला है जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। लेकिन, उसने पुलिस के पास जाने और बलात्कार की शिकायत दर्ज कराने का साहस जुटाया।
एक साल बाद, पुलिस ने उसके बयानों में विसंगतियों का हवाला दिया और मजिस्ट्रेट ने सबूतों के अभाव में मामला बंद कर दिया।
बिलकिस बानो ने अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) का दरवाजा खटखटाया और सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई की और एनएचआरसी से जवाब भी मांगा।
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बिलकिस बानो केस में सुनवाई
एनएचआरसी ने सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो की याचिका का समर्थन किया, जिसने दिसंबर 2003 में मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया। जनवरी 2004 में, सीबीआई ने बिलकिस बानो द्वारा नामित सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। सीबीआई ने मारे गए लोगों के शवों को जांच के लिए कब्र से बाहर भी निकाला लेकिन शव की खोपड़ियां गायब की गई थी जिससे शव की पहचान न की जा सके।
जैसे ही बिलकिस बानो ने सभी बाधाओं के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज की, उन्हें दो साल तक लगातार धमकियां मिलती रहीं और 20 बार मकान बदलने पड़े। बाद में उन्होंने मामले को गुजरात से बाहर स्थानांतरित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
अगस्त 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो मामले की सुनवाई गुजरात से मुंबई स्थानांतरित कर दी।
सबूतों के अभाव में छूट गए आरोपी
मुंबई की ट्रायल कोर्ट ने 20 में से 13 आरोपियों को दोषी पाया। कोर्ट ने 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई लेकिन सबूतों के अभाव के कारण उनको 14 साल की सज़ा के बाद बरी कर दिया गया।
सीबीआई ने बताया था कि जसवंत नाई, गोविंद नाई और नरेश कुमार मोढ़डिया ने बिलकिस बानो का रेप किया और शैलेश भट्ट ने बिलकिस की बच्ची सलेहा का सिर जमीन पर पटककर उसे मार डाला। बाकी दोषियों को भी रेप और हत्या का दोषी बताया गया था।
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