Navratri Ghatasthapana Date & Time | नवरात्रि स्थापना कब करें? इस वर्ष नवरात्र की शुरुआत 22 सितंबर 2025 सोमवार से हो रही है समापन 2 अक्टूबर 2025 को विजयादशमी के साथ होगा. देवी भागवत पुराण के अनुसार यदि नवरात्र की शुरुआत सोमवार को हो, तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर भक्तों से मिलने आती हैं.
“शशि सूर्य गजारूढ़ा शनिभौमै तुरंगमे.
गुरौ शुक्रे च दोलायं बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥”
हाथी आगमन का महत्व:-
धार्मिक ग्रंथों में मां दुर्गा का हाथी पर सवार होकर आना अत्यंत शुभ माना गया है. हिंदू धर्म में हाथी को ऐश्वर्य, शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. यह विश्वास है कि जब मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं, तो मौसम अनुकूल रहता है, अन्न-धान्य की वृद्धि होती है और कृषि क्षेत्र में प्रगति देखने को मिलती है. चारों ओर सुख-समृद्धि का वातावरण बना रहता है. भक्तों के लिए यह सुख और संपन्नता का संकेत माना जाता है.

घट स्थापन :-
आश्विन शुक्ल पक्ष १ सोमवार दिनांक
२२:०९:२०२५ ई.को घटस्थापन मुहूर्त प्रातः ०६:३०से ०८:०० अमृत वेलायां
दिवा ०९:३० से ११:०० शुभ वेलायां
दिवा १२:०६ से १२:५५ अभिजित वेला
इन शुभ समयों में पूजन एवं घटस्थापन करना श्रेष्ठ रहेगा.
इन मुहूर्त में कलश(घट) स्थापना करना शुभ रहेगा.
(नि.सा.पंचागानुसार)

मां दुर्गा का आगमन:-
देवी भागवत पुराणानुसार नवरात्रि के समय में मां दुर्गा का पृथ्वी पर निवास रहता हैं। लेकिन मां का आगमन किसी न किसी वाहन पर सवार होकर आती हैं और वापसी भी इसी प्रकार करती हैं।

श्लोक:-
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥
देवी भागवत पुराण के इस श्लोक के अनुसार, वार के अनुसार देवी के आगमन और प्रस्थान के वाहन का निर्णय लिया जाता है।
नवरात्रि का प्रारंभ सोमवार या रविवार को होने पर मां का आगमन हाथी पर मंगलवार या शनिवार को घोड़े पर शुक्रवार , गुरुवार को डोली में आती हैं। बुधवार के नौका में सवार होकर आती हैं।
पूजा सामग्री:-
चौड़े मुंह वाला मिट्टी का एक बर्तन कलश
सप्तधान्य (७ प्रकार के अनाज)
पवित्र स्थान की मिट्टी
गंगाजल
कलावा/मौली
आम या अशोक के पत्ते
नारियल
सुपारी
अक्षत (कच्चा साबुत चावल)
पुष्प और पुष्पमाला
लाल कपड़ा
मिठाई
सिंदूर
दूर्वा
चौकी लकडी की
नीबू
लोंग
इलायची
घी
दीपक
रुई,माचिस
चित्र माता का
सुहाग सामान
आसन
जवाब
झंडा
गूगल,धूप
पूजन विधि-:-
पूजा की सामग्री एकत्रित कर शारदीय नवरात्रि को स्नान करने के बाद लाल वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद एक चौकी पर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करके उस पर लाल कपड़ा बिछाएं और मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें और कलश की स्थापना करें। कलश की स्थापना करने के बाद मां दुर्गा को लाल वस्त्र, लाल फूल, लाल फूलों की माला और श्रृंगार आदि की वस्तुएं अर्पित करें और धूप व दीप जलाएं। यह सभी वस्तुएं अर्पित करने के बाद गोबर के उपले(कंडे) पर हवन करें। जिसमें घी, लौंग, बताशे, कपूर आदि चीजों की आहुति दें। मां दुर्गा की धूप व दीप से आरती उतारें और उन्हें प्रसाद में वर्फी का भोग लगाएं।
नव दिवस का प्रसाद:-
मां शैलपुत्री:-
इस दिन मां दुर्गा के पहले रूप शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है. मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं. उनको संफेद रंग पसंद है. इसके साथ ही उनको गाय के घी का बना भोग लगाना शुभ माना जाता है. नवरात्रि के पहले दिन गाय के घी से बना हुआ हलवा, रबड़ी या मावे के लड्डू का भोग लगता है.
इस दिन पीले वस्त्र धारण कर पूजा करें.
मां ब्रह्मचारिणी :-
इस दिन मां के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है. उनका प्रिय भोग शक्कर और पंचामृत माना जाता है. नवरात्रि के दूसरे दिन इसका भोग मां को अर्पित कर सकते है.
इस दिन हरे वस्त्र धारण कर पूजा करें.
मां चंद्रघंटा:-
इस दिन मां के चंद्रघंटा स्वरूप की उपासना की जाती है. मां चंद्रघंटा को दूध बहुत प्रिय है. माता को दूध की बनी मिठाई, खीर का भोग लगाना शुभ माना जाता है. इसका भोग लगाने से मां बहुत प्रसन्न होती हैं.
इस दिन भूरे रंग के वस्त्र धारण कर पूजा करें.
मां कुष्मांडा :-
इस दिन मां कुष्मांडा की उपासना होती है. मां को मालपुए का भोग लगाया जाता है. मां को मालपुए बहुत प्रिय होते हैं. मालपुए का प्रसाद सभी को बांटने के साथ खुद भी ग्रहण करे.
इस दिन नारंगी रंग के वस्त्र धारण कर पूजा करें. मां स्कंदमाता:-
इस दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है. केले का भोग लगाया जाता है.
इस दिन सफेद रंग के वस्त्र धारण कर पूजा करें.
मां कात्यायनी:-
इस दिन मां कात्यायनी को देवी दुर्गा का छठा रूप माना जाता है. ऋषि पुत्री होने के कारण मां को कात्यायनी नाम से जाना जाता है. मां को भोग लगाने के लिए मीठे पान, लौकी या शहद का उपयोग किया जाता है.
इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण कर पूजा करें.
मां कालरात्रि
मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं. मां दुर्गा के सातवें रूप कालरात्रि की पूजा की जाती है. इनके शरीर का रंग घने अंधेरे जैसा और बाल बिखरे रहते हैं, इसलिए इन्हें कालरात्रि कहा जाता है. मां कालरात्रि को गुड़ बहुत प्रिय है. गुड़ से बने प्रसाद का भोग लगाना चाहिए.
इस दिन नीले रंग के वस्त्र धारण कर पूजा करें.
मां महागौरी :-
इस दिन मां के महागौरी रूप की उपासना की जाती है. महागौरी को माता पार्वती का रूप माना जाता है. महागौरी को नारियल बहुत प्रिय है. अष्टमी के दिन मां को नारियल का गोला चढ़ाएं.
इस दिन गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कर पूजा करें.
मां सिद्धदात्री :-
इस दिन मां सिद्धदात्री माता दुर्गा का नौवीं शक्तिस्वरुप हैं. मां भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं. नवरात्र के नौवे दिन इनकी पूजा की जाती है. इसके बाद कन्या पूजन की जाती है. पूजन करने के बाद उनको चना मसाला या फिर हलवा पूड़ी और खीर का भोग लगाना चाहिए.
इस दिन जामुनी,बैंगनी र॔ग के वस्त्र धारण कर पूजा करें.
दुर्गा माता की स्तुति :-
त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी।
त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्।
परब्रह्मास्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेजःस्वरूपा परमा भक्तानुग्रहविग्रहा।
सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्पर॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया।
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमंगलमंगला॥।
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चंन्र्दमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत’.
आरती:-
अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ।।
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जगजननी जय! जय!!
माँ! जगजननी जय! जय!!
भयहारिणि, भवतारिणि,
माँ भवभामिनि जय! जय ॥
जगजननी जय जय..॥
तू ही सत-चित-सुखमय,
शुद्ध ब्रह्मरूपा ।
सत्य सनातन सुन्दर,
पर-शिव सुर-भूपा ॥
जगजननी जय जय..॥
आदि अनादि अनामय,
अविचल अविनाशी ।
अमल अनन्त अगोचर,
अज आनँदराशी ॥
जगजननी जय जय..॥
अविकारी, अघहारी,
अकल, कलाधारी ।
कर्त्ता विधि, भर्त्ता हरि,
हर सँहारकारी ॥
जगजननी जय जय..॥
तू विधिवधू, रमा,
तू उमा, महामाया ।
मूल प्रकृति विद्या तू,
तू जननी, जाया ॥
जगजननी जय जय..॥
राम, कृष्ण तू, सीता,
व्रजरानी राधा ।
तू वांछाकल्पद्रुम,
हारिणि सब बाधा ॥
जगजननी जय जय..॥
दश विद्या, नव दुर्गा,
नानाशस्त्रकरा ।
अष्टमातृका, योगिनि,
नव नव रूप धरा ॥
जगजननी जय जय..॥
तू परधामनिवासिनि,
महाविलासिनि तू ।
तू ही श्मशानविहारिणि,
ताण्डवलासिनि तू ॥
जगजननी जय जय..॥
सुर-मुनि-मोहिनि सौम्या,
तू शोभाऽऽधारा ।
विवसन विकट-सरुपा,
प्रलयमयी धारा ॥
जगजननी जय जय..॥
तू ही स्नेह-सुधामयि,
तू अति गरलमना ।
रत्नविभूषित तू ही,
तू ही अस्थि-तना ॥
जगजननी जय जय..॥
मूलाधारनिवासिनि,
इह-पर-सिद्धिप्रदे ।
कालातीता काली,
कमला तू वरदे ॥
जगजननी जय जय..॥
शक्ति शक्तिधर तू ही,
नित्य अभेदमयी ।
भेदप्रदर्शिनि वाणी,
विमले! वेदत्रयी ॥
जगजननी जय जय..॥
हम अति दीन दुखी माँ!,
विपत-जाल घेरे ।
हैं कपूत अति कपटी,
पर बालक तेरे ॥
जगजननी जय जय..॥
निज स्वभाववश जननी!,
दयादृष्टि कीजै ।
करुणा कर करुणामयि!
चरण-शरण दीजै ॥
जगजननी जय जय..॥
जगजननी जय! जय!!
माँ! जगजननी जय! जय!!
भयहारिणि, भवतारिणि,
माँ भवभामिनि जय! जय ॥
जगजननी जय जय…..
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ॐ दुर्गे दुर्गे महामाये
सर्वशक्तिस्वरूपिणि ।
त्वं काली कमला ब्राह्मी
त्वं जया विजया शिवा ॥
त्वं लक्ष्मीर्विष्णुिलोकेषु
कैलासे पार्वती तथा ।
सरस्वती ब्रह्मलोके
चेन्द्राणी शक्रपूजिता ॥
वाराही नारसिंही च
कौमारी वैष्णवी तथा । त्वमापः सर्वलोकेषु
ज्योतिस्त्वं ज्योतिरूपिणी ।
योगमाया त्वमेवासि
वायुरूपा नभःस्थिता । सर्वगन्धवहा पृथ्वी
नानारूपा सनातनी ॥
विश्वरूपे विश्वेशे
विश्वशक्तिसमन्विते । प्रसीद परमानन्दे
दुर्गे देवि नमोस्तु ते ।
नानापुष्पसमाकीर्णं
नानासौरभसंयुतम् । पुष्पाञ्जलिञ्च विश्वेशि
गृहाण भक्तवत्सले ॥
पुष्पाञ्जलिः
ॐ साङ्गसवाहनसायुधसपरिवारायै भगवत्यै श्रीदुर्गा देव्यै नमः ॥
नीराजन :-
ॐ कर्पूरवर्तिसंयुक्तं
वह्निना दीपितञ्च यत् ।
नीराजनं च देवेशि
गृह्यतां जगदम्बिके ॥ इदं नीराजनम् नमः॥
क्षमापन :
ॐ प्रार्थयामि महामाये
यत्किञ्चित् स्खलितं मम । क्षम्यतां तज्जगन्मातः
दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥
प्रणाम करे:-
ॐ महिषघ्नि महामाये
चामुण्डे मुण्डमालिनि ।
द्रव्यमारोग्यमैश्वर्यं
देहि देवि नमः सदा ॥
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे
सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि
दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥
